कौन हो तुम, आज अंजान में मिल गए,
तुम मिले तो तिमिर की डगर में मिले,
तुम मिले, चाँदनी के नगर में मिले,
अश्रु में और मुस्कान में मिले,
तुम चले, इति चली, और अथ भी चला,
तुम चले, साथ ही साथ पथ भी चला,
देह की बात क्या, प्राण में मिल गए।
व्योम से बीन में, बीन से तार में,
तार से मिले हुए लीन झंकार में,
स्वर मिले फिर गान में मिल गए।
फूल की गंध तुम फूल में मत छिपो,
मूल है विश्व में, मूल से मत छिपो,
तुम छिपे, किंतु पहचान में मिल गए।
स्व० सुशीला खरे
Hi everyone! Very excited to introduce the poetry section today. Recently found a collection of original poems written by my maternal grandmother, Late Mrs. Sushila Khare, a quite knowledgeable, creative, and advanced person of her time and one of the purest souls I know. Her collection of literature (both Hindi and English) was very exquisite, she had a fine taste in this particular area. So, today, I am inaugurating the poetry section, with one of her poems.
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